जो दीसै सो तो नाही है सो कहा न जाई
बिन देखै परतीत न आवै कहै न को पतियाना
समझा होय तो शब्दै चीन्है अचरज होय अयाना
कोई ध्याबै निकारा को कोई ध्यावै आकारा
या विधी इन दोनों ते न्यारा जानै जाननहारा
वह राग तो लखा न जाई मात्रा लागै न काना
कहै 'कबीर' सो पढ़ै न परलय सुरत निरत जिन जाना
जो दिखाई देता है वह है नहीं और जो है वह बयान से बाहर है. बिना देखे विश्वास नहीं होता और जैसा उसका वर्णन किया जाताहै वह विश्वास करने योग्य नहीं है. जिसे ज्ञान हो वही शब्दों को पहचान सकता है और जो अज्ञानी है वह हैरान है. कोई तो निरकार का ध्यान करता है और कोई साकार का लेकिन केवल ज्ञानी ही जानते हैं कि ब्रहम इन दोनों से भिन्न है. वह राग है जो आँखों से देखा नहीं जा सकता क्योंकि उसमें शब्दों की तरह मात्रा (पाई) और बिंदियाँ आदी नहीं लगाई जातीं. ‘कबीर’ कहते हैं कि जिसने प्रेम और वैराग दोनों को अपना लिया है उसे परलय का कोई भा नहीं.
(अनुवाद: सरदार जाफ़री)
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