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ना'त-ओ-मनक़बत
आँख रख कर भी न पहचाना नबी की आल कोतुम ने अपनी आल का कितना ख़सारा कर दिया
उबैद ख़ान मोहसिन
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सूफ़ी लेख
अमीर खुसरौ को हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की छूट
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया की नज़र में अमीर ख़ुसरो का मे’यार-ए-दीनदारी इतना बुलंद न था कि वो
अकमल हैदराबादी
ग़ज़ल
वक़्त-ए-आख़िर उन को मेरी याद गर आई तो क्याबाद मर जाने के मैं ने ज़िंदगी पाई तो क्या
ख़ुसरौ काकोरवी
ग़ज़ल
इ'श्क़ सनम से हो गया उस के असर को क्या करूँबंदा हूँ तेरा ऐ ख़ुदा हुस्न-ए-बशर को क्या करूँ