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सूफ़ी कहावत
हर कि नसीहत न-शनवद सर-ए-मलामत शुनीदन दारद
जो सलाह नहीं सुनेगा,उसको शर्मिंदा होना पड़ेगा
वाचिक परंपरा
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ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ ज़मीं तुझ पर नुज़ूल-ए-आसमाँ होने को हैगोया नूर ख़ालिक़-ए-'आलम अ'याँ होने को है
सय्यद फ़ैज़ान वारसी
शे'र
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ऐ दोस्तो चश्म को खोल ज़रा देखो कैसा है माह-ए-लक़ाबे-शक है मोहम्मद नूर-ए-ख़ुदा शुबहा न कर इस में असला
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
कलाम
अपनी निगाह-ए-शौक़ को रोका करेंगे हमवो ख़ुद करें निगाह तो फिर क्या करेंगे हम
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
गीत
ऐ री सखी क्या मैं तो-को बताऊँ रोग लगा वह तन-मन कोप्रीत में टूटे अंग-अंग मोरा कैसे बताऊँ साजन को
अब्दुल हादी काविश
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
रफ़्तम ब-कू-ए-ख़्वाजा व गुफ़्तम कि ख़्वाजा कूगुफ़्ता कि ख़्वाजा आशिक़-ओ-मस्तस्त-ओ-कू-ब-कू
रूमी
ग़ज़ल
ख़लील सफ़िपुरी
कलाम
ऐ यार न मुझ से मुँह को छुपा तू और नहीं मैं और नहींहै शक्ल तेरी मेरा नक़्शा तू और नहीं मैं और नहीं