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मलामत-पेशः-ओ-जादू-नयन था

तुराब अली दकनी

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तुराब अली दकनी

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    मलामत-पेशः-ओ-जादू-नयन था

    दिल-ए-रम-करद: वहशी-ए-ख़ुतन था

    कि ज्यों परवाना दिल जाँ साैखता है

    मगर आया शम्अ-ए-अंजुमन था

    लगाया तीर-ए-मिज़्गाँ जिस कूँ कल तूँ

    पड़ा मैदान में बे-दफ़न था

    बना गुलदस्तः-ए-दस्तार तेश:

    निसार-ए-नाम-ए-शीरीं कोहकन था

    कहा काफ़-ए-काकुल का मुजे भेद

    अली-ए-मुर्तज़ा जो बुत-शिकन था

    दिल-ए-क़ुमरी गया जो मुब्तला कर

    अलिफ़-क़द-ओ-अजब सर्व-ए-चमन था

    ग़नीमत है जो कोई बाद-अज़ कहे यूँ

    'तुराब'-ए-दर्दमंद साहिब-सुख़न था

    स्रोत :
    • पुस्तक : दीवान-ए-तुराब (पृष्ठ 129)
    • रचनाकार : शाह तुराब अली दकनी
    • प्रकाशन : अंजुमन तरक़्क़ी उर्दू (पाकिस्तान) (1983)
    • संस्करण : First

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