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नज़्म
राखी
चलि आती है अब तो हर कहीं बाज़ार की राखीसुनहरी सब्ज़ रेशम ज़र्द और गुलनार की राखी
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
।। गुरू नानक ।।
हैं कहते नानक शाह जिन्हें वह पूरे हैं आगाह गुरू।वह कामिल रहबर जग में हैं यूँ रौशन जैसे माह गुरू।
नज़ीर अकबराबादी
नज़्म
होली की बहारें
जब फागुन रंग झमकते हों तब देख बहारें होली कीऔर दफ़ के शोर धड़कते हों तब देख बहारें होली की