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कलाम
दूद-ए-दिल मेरा न चश्म-ए-कम से देख ऐ रश्क-ए-महपहन होगा ये अगर तू आसमाँ हो जाएगा
ग़ुलाम अ’ली रासिख़
कलाम
सुख़न-सनजाँ साहिब-ए-दिल है क़द्र उस की समझते हैंबदल है ये मिरा दीवान दीवान-ए-नज़ीरी का
ग़ुलाम अ’ली रासिख़
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ग़ज़ल
चाहने वालों से अपने यूँ ख़फ़ा तुम क्यूँ हुएदुश्मन-ए-जानी-ए-अर्बाब-ए-वफ़ा तुम क्यूँ हुए
ग़ुलाम अ’ली रासिख़
ग़ज़ल
दिल हवस वालों के महरूम उस के परतव से रहेजलवा-गाह-ए-दाग़-ए-जानाँ सीना-ए-अब्रार था
ग़ुलाम अ’ली रासिख़
ग़ज़ल
तेरा ऐ दामान-ए-वस्ल-ए-यार इस में क्या क़ुसूरहाथ बख़्त-ए-ना-रसा का अपने ही कोताह है
ग़ुलाम अ’ली रासिख़
ग़ज़ल
बस-कि ढूँडे अहल-ए-दिल मिल उन से साहब-ए-दिल हुआजब फिरा मैं बरसों तब ये आबला हासिल हुआ