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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
बुलबुले बर्ग-ए-गुले-ख़ुश-रंग दर मिंक़ार दाश्तवंदर आँ-बर्ग-ओ-नवा-ख़ुश-नालः-हा-ए-ज़ार दाश्त
हाफ़िज़
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
दोश लाल-ए-तू मरा ता-ब-सहर मेहमाँ दाश्तमुर्द:-ए-हिज्र ज़े-बू-ए-तू हमः शब जाँ दाश्त
अमीर ख़ुसरौ
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मुनाजात
अब तंगी-ए-दामाँ पे न जा और भी कुछ माँग
अब तंगी-ए-दामाँ पे न जा और भी कुछ माँगहैं आज वो माइल ब-अता और भी कुछ माँग
पीर नसीरुद्दीन नसीर
शे'र
दश्त-नवर्दी के दौरान 'मुज़फ़्फ़र' सर पर धूप रहीजब से कश्ती में बैठे हैं रोज़ घटाएँ आती हैं
मुज़फ़्फ़र वारसी
कलाम
फिर चराग़-ए-लाला से रौशन हुए कोह-ओ-दमनमुझ को फिर नग़्मों पे उकसाने लगा मुर्ग़-ए-चमन
अल्लामा इक़बाल
बैत
वाबस्ता रख हुज़ूर से दामन हयात का
वाबस्ता रख हुज़ूर से दामन हयात काऐ दिल यही है एक ज़रीया’ नजात का
क़मर वारसी
पद
एग्ज्ञारह सै अड़तालीस में हम गुरु का दामन पकड़ा
एग्ज्ञारह सै अड़तालीस में हम गुरु का दामन पकड़ाहर एक तरफ़ की हिसों हवा से मन को अपने जकड़ा