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कलाम
ये दिल है वो मकाँ जो ला-मकाँ वाले की मंज़िल हैवो लैला है इसी में ये उसी लैला का महमिल है
औघट शाह वारसी
कलाम
काश मिरी जबीन-ए-शौक़ सज्दों से सरफ़राज़ होयार की ख़ाक-ए-आस्ताँ ताज-ए-सर-ए-नियाज़ हो
बेदम शाह वारसी
कलाम
मैं उस मंज़िल में हूँ ये दिल की हालत होती जाती हैकि हर सूरत सज़ा-वार-ए-मोहब्बत होती जाती है
एहसान दानिश
पद
चले मंजल दर मंजल आया बे-दर के मिसल
चले मंजल दर मंजल आया बे-दर के मिसलवहाँ हुई सो नक्कल व सकल तुम सुनो
गोंदा महाराज
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ दिल म-बाश ख़ाली यक-दम ज़े-इश्क़-ओ-मस्तीवाँगह ब-रौ कि रस्ती अज़ नेस्ती-ओ-हस्ती