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कलाम
ताबिश कानपुरी
ग़ज़ल
मुझे तो अब सफ़र में भी घुटन महसूस होती हैमुझे अपने नगर में भी घुटन महसूस होती है
नक़ीबुल रहमान हसनी
पद
चले मंजल दर मंजल आया बे-दर के मिसल
चले मंजल दर मंजल आया बे-दर के मिसलवहाँ हुई सो नक्कल व सकल तुम सुनो
गोंदा महाराज
ना'त-ओ-मनक़बत
मेरी सम्त मुश्किलों ने जो कभी नज़र उठाईवहीं याद-ए-फ़ख़्र-ए-रहमत मेरी रहबरी को आई
शैदा वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
दयार-ए-मुस्तफ़वी के सफ़र की बात करोजो कर सको तो मोहम्मद के दर की बात करो