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गोटे और आफ़्ताब में क्या निस्बत हैकिरन
'ख़ुसरौ' 'निजाम' के बल-बल जइएमोहे सुहागन कीन्हीं रे मोसे नैनाँ मिलाय के
सारे महबूब जिस पे हैं क़ुर्बांआओ उस दिलरुबा की बात करें
दानाई से दाँत उस पे लगाता नहीं कोईसब उस को भुनाते हैं पे खाता नहीं कोई
आरज़ू है उस आस्ताने कीबिगड़ी बनती जहाँ ज़माने की
'ख़ुसरौ' ब-कमंद-ए-तू असीरस्तबे-चार: कुजा रवद ज़े कूयत
आना-जाना उस का भाएजिस घर जाए लकड़ी खाए
'ख़ुसरव' कह दिया उस का नाँवअर्थ करो या छोड़ो गाँव
चोरी की ना ख़ून कियाउस का सिर क्यूँ काट लिया
उस दुल्हन की रैन सुहागनजिस सावन में पिया घर नाहीँ
ब-यक आमदन रुबूदी दिल-ओ-दीन-ओ-सब्र-ए-'ख़ुसरौ'चे शवद अगर ब-दीं-सा दो-सेह बार ख़्वाही आमद
'ख़ुसरौ' अज़ तू पनाह मी-जोयदऐ पनाह-ए-मन-ओ-पनाह-ए-हमः
परतव नहीं कब उस में किसी ख़ुश-जमाल काबज़्म-ए-परी है आईना अपने ख़याल का
बारे अंदेशः-ए-'खुसरौ' मी-कुनकि ब-हक़ जुम्लः जहान-ए-नमक अस्त
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