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शे'र
जिगर मुरादाबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
क्या लुत्फ़ का मौसम है मोहब्बत की फ़ज़ा हैछाई दर-ए-शहबाज़ पे रहमत की घटा है
इश्तियाक़ आलम शहबाज़ी
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ग़ज़ल
जिगर मुरादाबादी
साखी
प्रेम का अंग - प्रेम बिना धीरज नहीं बिरह बिना बैराग
प्रेम बिना धीरज नहीं बिरह बिना बैरागसतगुरु बिन जावै नहीं मन मनसा का दाग़
कबीर
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
बुलबुले बर्ग-ए-गुले-ख़ुश-रंग दर मिंक़ार दाश्तवंदर आँ-बर्ग-ओ-नवा-ख़ुश-नालः-हा-ए-ज़ार दाश्त
हाफ़िज़
सलाम
सहर का वक़्त है मा'सूम कलियाँ मुस्कुराती हैंहवाएँ ख़ैर-मक़्दम के तराने गुनगुनाती हैं
माहिरुल क़ादरी
कलाम
माहिरुल क़ादरी
कलाम
हम तो हैं परदेस में देस में निकला होगा चाँदअपनी रात की छत पर कितना तन्हा होगा चाँद