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गूजरी सूफ़ी काव्य
गोर अँधियारी डर बड़ा 'बाजन' खड़ा मुफ़्लिस
गोर अँधियारी डर बड़ा 'बाजन' खड़ा मुफ़्लिसहेड़ा काँपे डीव डरे ये दुख आखूं किस
शैख़ बहाउद्दीन बाजन
सूफ़ी कहावत
ता अब्लहा दर जहान अस्त, मुफ़्लिस दर नमी मांद
जब तक दुनिया में मूर्ख मौजूद रहेंगे, ग़रीब बेबस नहीं होंगे।
वाचिक परंपरा
ना'त-ओ-मनक़बत
मुफ़्लिस-ए-वक़्त को सुल्तान किए बैठे हैंसारे आ'लम पे वो एहसान किए बैठे हैं
महबूब गौहर इस्लामपुरी
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मसनवी
बर अर्बाब-ए-ईमाँ कुशा बाब-ए-रिज़्क़कि मुफ़्लिस न मानिंद-ए-ईशाँ ज़े-सिद्क़
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
यके आलिम यके जाहिल यके ज़ालिम यके आजिज़यके मानम यके मुफ़्लिस यके शादाँ यके महज़ूँ
हकीम सनाई
कलाम
नंगों को किस्वतें दे भूखों को ने'मतें देतिश्नों को शर्बतें दे मुफ़्लिस को दौलतें दे
नेमती फुलवारवी
ना'त-ओ-मनक़बत
'अम्बर'-ए-ख़स्ता बहुत ही मुफ़्लिस-ओ-मजबूर हैडाल दीं चश्म-ए-करम मख़्दूमा-ए-रब्बानिया
उवेस रज़ा अम्बर
ना'त-ओ-मनक़बत
मरज'-ए-अहल-ए-अ’क़ीदत आप का दरबार हैतकिया-गाह मुफ़्लिस-ओ-ख़ैल-ए-ग़रीबाँ आप हैं
वासिफ़ रज़ा वासिफ़
कलाम
नादार हूँ मुफ़्लिस हूँ मगर जान भी दे करमैं तेरा ख़रीदार हूँ ऐ जान-ए-तमन्ना