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सुरूर-ओ-कैफ़ का नग़्मा ग़म-ओ-अंदोह का नौहातिलिस्म-ए-ज़ीस्त की सरगम कभी कुछ है कभी कुछ है
अब्दुल हादी काविश
कलाम
रूह-ए-रवाँ नग़्मा तुम नग़्मों का सोज़ साज़ मेंजान-ए-ख़याल-ओ-ख़्वाब तुम जान-ए-जहान-ए-नाज़ में
बह्ज़ाद लखनवी
ग़ज़ल
आह को दर्द चाहिए नग़्मे को साज़ चाहिए'राज़' का माजरा है ये राज़ को 'राज़' चाहिए
शाह तक़ी राज़ बरेलवी
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आ’शिक़
आशिक़
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जहाँ हैं महव-ए-नग़्मा बुलबुलें गुल जिस में ख़ंदाँ हैंउसी गुलशन में कल ज़ाग़-ओ-ज़ग़न का आशियाँ होगा
अर्श गयावी
ग़ज़ल
ये जो लगा है तीर मुझे ऐ कमान-ए-इश्क़महशर में देखियो यही होगा निशान-ए-इश्क़
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
कहियो ऐ क़ासिद पयाम उस को कि तेरे हिज्र सेजाँ-ब-लब पहुँचा नहीं आता है तू याँ अब तलक
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ग़ज़ल
आह फिर तुझ को ऐ बे-रहम ख़बर करते हैंया'नी आ जा दम-ए-आख़िर है सफ़र करते हैं
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
इ’श्क़ अदा-नवाज़-ए-हुस्न हुस्न करिश्मा-साज़-ए-इश्क़आज से क्या अज़ल से है हुस्न से साज़-बाज़-ए-इ’श्क़