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साखी
सतसंग का अंग - 'कबीर' चंदन के निकट नीम भी चंदन होय
'कबीर' चंदन के निकट नीम भी चंदन होयबूड़े बाँस बड़ाइया यों जनि बूड़ो कोय
कबीर
दोहा
विनय मलिका - कलप बृच्छ के निकट हीं सकल कल्पना जाय
कलप बृच्छ के निकट हीं सकल कल्पना जाय'दयादास' तातें लई सरन तिहारी आय
दया बाई
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दोहा
विनय मलिका - मलयागिर के निकट हीं सब चंदन हो जात
मलयागिर के निकट हीं सब चंदन हो जातछूटै करम कुबासना महा सुगंध महकात
दया बाई
कवित्त
कालिय दमन - आपनो सो ढोटा हम सब ही को जानत है
ते तौ 'रसखानि' अब दूर ते तमासो देखैतरनितनूजा के निकट नहिं आवही
रसखान
राग आधारित पद
रागिनी मुल्तानी धनाश्री चौताल - पाक मोहम्मद अल्ला रसूल तेरौ ही नूर जहूर
अव्वल आखिर तुही निकट तुही दूरजित देखूँ तित तुही तुही व्यापि रह्यौ जल-थल
तानसेन
पद
कैसी मोहन बंसी वजाई
जमुना जी के तट निकट बिराजत ठाडी भये पुतनारीसाथ लियो ब्रिजबाल गोपाल ज्यो पिता घट कास सोंहाई
देवनाथ महाराज
शबद
उपदेश - प्रभु जी नहिं आवत मोहिं होस
खोजत सब कोइ अंत न पावै काला मैं का कोसआत्म राम सरूप निकट हीं माल सुंदर बड़ा ठोस
भीखा साहेब
पद
उल्टा व्यवहार - होली खेल न जाने बावरिया सतगुरू को दोष लगावे
निंदा धूल से उड़ उड़ भागे सतसंग निकट न आवेपाँच दृष्टि का रँग ले साथा नित पिचकार छुड़ावे
शालीग्राम
साखी
प्रेम का अंग - ये तो घर है प्रेम का मारग अगम अगाध
ये तो घर है प्रेम का मारग अगम अगाधसीस काटि पग तर धरै तब निकट प्रेम का स्वाद