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ना'त-ओ-मनक़बत
अमीर बख़्श साबरी
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कलाम
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
मिरी धड़कनों में बसा है तू मिरा तुझ पे दार-ओ-मदार हैतूही मेरा सब्र-ओ-क़रार है तू मिरे चमन की बहार है
ख़्वाजा शायान हसन
ना'त-ओ-मनक़बत
इस शान-ए-करम का क्या कहना दर पे जो सवाली आते हैंइक तिरी करीमी का सदक़ा वो मन की मुरादें पाते हैं