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ग़ज़ल
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
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ग़ज़ल
मज़ा है ज़िंदगानी का अगर हो पास दिलबर केनिकल कर वहम-ए-हस्ती से गुज़र हो पास दिलबर के
मीराँ शाह जालंधरी
ग़ज़ल
जा-ब-जा तुम बैठने उठने लगे जिस-तिस के पासकौन कहता है कहाँ किस वक़्त किस दिन किस के पास
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
पद
ख़ुद-बीं के तुम पास न बैठो वो हक़ से बेगाना है
ख़ुद-बीं के तुम पास न बैठो वो हक़ से बेगाना हैसोहबत उस की हर दाना को ग़म ग़ुस्से का खाना है
कवि दिलदार
साखी
बिरह का अंग - कै आबै पिय आपही कै मोहिं पास बुलाय
कै आबै पिय आपही कै मोहिं पास बुलायआय सकों नहिं तोहिं पै सकों न तुज्झ बुलाय
कबीर
दोहा
जमला जा सूँ प्रीत कर प्रीत सहित रह पास
जमला जा सूँ प्रीत कर प्रीत सहित रह पासना वो मिलै न बीछड़ै ना तो होय निरास
जमाल
राग आधारित पद
पिया मोरा पास रहत है दिन-रात
पिया मोरा पास रहत है दिन-रातऐसी आई है देखो बरसात
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
शे'र
लाया तुम्हारे पास हूँ या पीर अल-ग़ियासकर आह के क़लम से मैं तहरीर अल-ग़ियास