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Sufinama

मज़ा है ज़िंदगानी का अगर हो पास दिलबर के

मीराँ शाह जालंधरी

मज़ा है ज़िंदगानी का अगर हो पास दिलबर के

मीराँ शाह जालंधरी

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    मज़ा है ज़िंदगानी का अगर हो पास दिलबर के

    निकल कर वहम-ए-हस्ती से गुज़र हो पास दिलबर के

    नहीं है इ'श्क़-बाज़ों को रक़ीबों से कोई मतलब

    रुख़-ए-जानाँ पे तू कर के नज़र हो पास दिलबर के

    सनम की बे-नियाज़ी से हैं डरते आ'लिम-ओ-फ़ाज़िल

    ख़ुदी को दूर कर फिर बे-ख़तर हो पास दिलबर के

    हो मैं तू की बू हर्गिज़ तू ऐसा साफ़ हो दिल से

    तू अपने आप से बस बा-ख़बर हो पास दिलबर के

    ये दिल से मज़हब-ओ-मिल्लत का झगड़ा छोड़ दे वाइ'ज़

    जो हो काफ़िर हो या मोमिन मगर हो पास दिलबर के

    वो दिलबर दूर समझा है तेरी ये ख़ास ग़फ़लत है

    अगर है नहनो-अक़रब का असर हो पास दिलबर के

    उठा दे 'मीराँ शाह दिल से तक़ाज़ा वहम-ए-दूरी का

    करम अल्ताफ़ से गंज-ए-शकर हो पास दिलबर के

    स्रोत :
    • पुस्तक : गुलदस्ता-ए-मीरान शाह (पृष्ठ 16)
    • रचनाकार : मीरान शाह जालंधरी
    • प्रकाशन : हमीदिया स्टीम प्रेस लाहौर

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