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शे'र
कू-ब-कू फिरता हूँ मैं ख़ाना-ख़राबों की तरहजैसे सौदे का तेरे सर में मेरे घर हो गया
ख़्वाजा हैदर अली आतिश
शे'र
सबा की तरह रहा मैं भी कू-ब-कू फिरताहमारे दिल से भी उस गुल की जुस्तुजू न गई
शाह अमीरुद्दीन फ़िरदौसी
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पद
चौरासी में फिरते-फिरते उत्तम नरदेह पाया
चौरासी में फिरते-फिरते उत्तम नरदेह पायाभूला भूला फिरे दिवाना अबहू समज ना आया
देवनाथ महाराज
शे'र
रात-भर फिरता था कनआँ में ज़ुलेख़ा का ख़यालमिस्र को यूसुफ़ चले उस ख़्वाब की ता'बीर को
बेनज़ीर शाह वारसी
पद
भटका फिरता है क्यों हर सू समझाओ इस मत मारे को
भटका फिरता है क्यों हर सू समझाओ इस मत मारे कोमौजूद है हर शै के अंदर आ देख बनाने हारे को
कवि दिलदार
शे'र
नहीं लख़्त-ए-जिगर ये चश्म में फिरते कि मर्दुम नेचराग़ अब करके रौशन छोड़े हैं दो-चार पानी में
शाह नसीर
ग़ज़ल
नज़र में जिस की फिरती होवे उस ख़ूँ-ख़्वार की सूरतउसे हरगिज़ न ख़ुश आवे गुल-ओ-गुलज़ार की सूरत
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ना'त-ओ-मनक़बत
’आलम-ए-क़ुद्स की फिरती है फ़ज़ा आँखों मेंनक़्शा-ए-रू-ए-पयम्बर है खिंचा आँखों में
फ़ज़ली अमेठवी
ना'त-ओ-मनक़बत
दर-ब-दर फिरता हूँ मैं हैराँ-ओ-मुज़्तर या 'अलीकीजै आसान जो मुश्किल है मुझ पर या 'अली
नस्र फुलवारवी
ना'त-ओ-मनक़बत
वो आँखों में फिरता है दिल में मकीं हैकिसी ने मगर उस को देखा नहीं है
डाॅ. ज़ुहूरुल हसन शारिब
गूजरी सूफ़ी काव्य
दर-पर्दा ओसारे
इस मन मेरे तूँ बसे चिन्त और नावेचारों फरते हूँ फरी तेरी प्रित के बाँधे