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Sufinama

कहता हुआ फिरता है महशर में ये दीवाना

ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब

कहता हुआ फिरता है महशर में ये दीवाना

ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब

MORE BYख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब

    कहता हुआ फिरता है महशर में ये दीवाना

    यारब मिरा वीराना यारब मिरा वीराना

    जी में है चढ़ा जाऊँ मय-ख़ाना का मय-ख़ाना

    हाँ साक़ी-ए-दरिया-दिल पैमाने पे पैमाना

    दिखला दे कशिश इतनी जल्वा-ए-जानाना

    गुलशन में रहे बुलबुल महफ़िल में परवाना

    'आशिक़ तो है ज़ाहिद हर वक़्त 'इबादत में

    अश्कों का तसलसुल है इक सुब्हा-ए-सद-दाना

    आँखें मिरी होती हैं अब बंद हमेशा को

    हाँ एक झलक अब तो जल्वा-ए-जानाना

    इतनी तो पिला साक़ी अब इस से भी क्या कम हो

    लबरेज़ तो हो जाए ये 'उम्र का मय-ख़ाना

    साक़ी ने बदल डाली दुनिया मिरी हस्ती की

    आँखें हैं कि मय-ख़ाने दिल है कि परी-ख़ाना

    दीवाना बने उन का ये ज़र्फ़ ये हिम्मत

    'मज्ज़ूब' तो है उन के दीवानों का दीवाना

    स्रोत :
    • पुस्तक : Gufta (पृष्ठ 120)

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