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पद
ककहरा - सस्सा सोच करी मन माहिँ पिंड कहो कौन सँवारा
सस्सा सोच करी मन माहिँ पिंड कहो कौन सँवाराआदि अन्त का खेल किया किन बिधि बिधि सारा
तुलसी साहिब हाथरस वाले
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मन अज़ कुजा पंद अज़ कुजा बाद: ब-गर्दां साक़ियाऐ जाम-ए-जाँ अफ़ज़ा-ए-रा बर ज़ेर-ए-जान-ए-साक़िया
रूमी
सूफ़ी कहावत
मर्द बायद की गीरद अंदर गोश، वर नविश्ता अस्त पंद बर दीवार
एक आदमी को सलाह सुननी चाहिए, चाहे वो दीवार पर लिखी हो।
वाचिक परंपरा
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सूफ़ी कहावत
रिंद रा बंद-ओ-क़हबा रा पंद सूद न कुनद
ज़ंजीरें बदकरदार इंसान को तब्दील नहीं करतीं, और वेश्या के लिए कोई सलाहकार नहीं होता।
वाचिक परंपरा
शबद
बिरह और प्रेम का अंग - माई म्हाँरी हरि न बूझी बात
माई म्हाँरी हरि न बूझी बातपिंड में से प्राण पापी निकस क्यूँ नहिं जात
मीराबाई
पद
विरह के पद - माई म्हारी हरि जी न बूझी बात
माई म्हारी हरि जी न बूझी बातपिंड माँसूँ प्राण पापी निकस क्यूँ नहीं जात
मीराबाई
पद
ककहरा - कक्का कहुँ परथम गुरू साध आद सब संत बखानी
अंड नहीं ब्रह्मंड पिंड नहिं रचना ठानीअरे हाँ रे 'तुलसी' हता नहीं बैराट कहीं चोरासी खानी
तुलसी साहिब हाथरस वाले
शबद
मोरे अंग न अलसी तेल न मलियो न परमल पीसायों
न तु सुरनर न तु शंकर न तू रावण राणोंकाचै पिंड अकाज चलावै म्हा अधूरत दाणों
जम्भेश्वर
साखी
सूक्ष्म का अंग - बिन पाँवन की राह है बिन बस्ती का देस
बिन पाँवन की राह है बिन बस्ती का देसबिना पिंड का पुरूष है कहै 'कबीर' सँदेस
कबीर
पद
ककहरा - रर्रा राति दिवस कर खोज रोज रस ज्ञान सुनावै
पिंड माहिँ ब्रह्मंड सकल विधि रहा समाईअरे हाँ रे 'तुलसी' खोलि हिये की आँख संत दीन्हा दरसाई