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ग़ज़ल
क़ौल-ओ-क़रार तेरी ख़ातिर से मानता हूँवर्ना ये झूटी बातें मैं ख़ूब जानता हूँ
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ना'त-ओ-मनक़बत
अज्ञात
ना'त-ओ-मनक़बत
आक़ा मेरे क़रार हैं हर बे-क़रार केमहबूब-ए-कुल हैं यार हैं परवरदिगार के
शब्बीर साजिद मेहरवी
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रूबाई
रौनक़-ए-कुल औलिया या ग़ौस-ए-आ'ज़म दस्तगीरपेशवा-ए-अस्फ़िया या ग़ौस आ'ज़म दस्तगीर
शाह आयतुल्लाह क़ादरी
बैत
ये वहम-ए-सरासर है जुदा जुज़्व है कुल से
ये वहम-ए-सरासर है जुदा जुज़्व है कुल सेक़तरा नहीं होता तो समंदर नहीं होता
अतहर नियाज़ी
ग़ज़ल
'इश्क़ को हर जुज़ और हर कुल में देखा चाहिएहर शजर हर बर्ग और हर गुल में देखा चाहिए
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
दोहरा
इक बह कोल ख़ुशामद करदे
इक बह कोल ख़ुशामद करदे पर ग़रज़ी होन कमीनेइक बे-परवाह न पास खड़ोवन पर होवन यार नगीने
हाशिम शाह
दोहा
समय दसा कुल देखि कै सबै करत सनमान
समय दसा कुल देखि कै सबै करत सनमान'रहिमन' दीन अनाथ को तुम बिन को भगवान
रहीम
दोहा
प्रीत जो कीजै देह धर उत्तम कुल सुँ लाल
प्रीत जो कीजै देह धर उत्तम कुल सुँ लालचकमक जुग जल में रहै अगन न तजै 'जमाल'
जमाल
सूफ़ी लेख
क़ौल, क़ल्बाना, नक़्श, गुल, तराना, छंद और रंग
क़ौल, क़ल्बाना, नक़्श, गुल, तराना, छंद और रंग क़व्वाली के मुख़्तलिफ़ रूप हैं जिनमें क़ौल-ओ- क़ल्बाना
अकमल हैदराबादी
बैत
लब-ए-गुल पे आए तबस्सुम तो कैसे
लब-ए-गुल पे आए तबस्सुम तो कैसेकि काँटों की ज़द में कोई पैरहन है
क़रार अकबराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
'आशिक़ों का कुल सर-ओ-सामाँ मोहम्मद मुस्तफ़ादीं मोहम्मद मुस्तफ़ा ईमाँ मोहम्मद मुस्तफ़ा