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Sufinama

उन सा, न पहले था कोई न अब है न होगा

पुरनम इलाहाबादी

उन सा, न पहले था कोई न अब है न होगा

पुरनम इलाहाबादी

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    कुल अंबिया से अफ़ज़ल आली मक़ाम हैं वो

    अल्लाह भेजता है जिस पर सलाम हैं वो

    अक़्सा में की इमामत सारे पयम्बरों की

    सारे पयम्बरों के बेशक इमाम है वो

    नबी सय्यदुल अंबिया के बराबर

    पहले था कोई अब है होगा

    मोहम्मद का सानी मोहम्मद का हम-सर

    पहले था कोई अब है होगा

    उन सा, पहले था कोई अब है होगा

    रसूल और भी आए जहान में, लेकिन

    उनसा, पहले था कोई अब है होगा

    ताहा-ओ-यासीन, मुज़म्मिल

    मर्कज़-ए-कुल और हुस्न-ए-मुकम्मिल

    पहले था कोई अब है होगा

    नूर-ए-मुबीं, हक़ के क़रीं

    फ़र्श मकीं हैं, अ़र्श नशीं हैं

    उन सा, पहले था कोई अब है होगा

    नूर-ए-मुनव्वर अव्वल-ओ-आख़िर

    रौशन-रौशन बातिन-ज़ाहिर

    उन सा, पहले था कोई अब है होगा

    रसूल-ए-मुज्तबा कहिए

    मोहम्मद मुस्तफ़ा कहिए

    ख़ुदा के बाद बस वो हैं

    फिर इसके बाद क्या कहिए

    उन सा, पहले था कोई अब है होगा

    मोहम्मद का सानी मोहम्मद का हमसर

    पहले था कोई अब है होगा

    अगर है तो इक ज़ात अल्लाह की है

    जो ज़ात-ए-मोहम्मद से आला है वरना

    मोहम्मद से आला, मोहम्मद से बढ़कर

    उन सा, पहले था कोई अब है होगा

    जिसे हक़ ने बुलवाया अर्श-ए-उला पर

    हुआ फ़ज़्ल-ए-हक़ से जो मेहमान-ए-दावर

    ख़ुदा की ख़ुदाई में ऐसा पयम्बर

    उन सा, पहले था कोई अब है होगा

    ज़ुलैख़ा थीं जिस पे फ़िदा जान-ओ-दिल से

    वो युसुफ़ बड़े ख़ूबसूरत थे लेकिन

    रुख़-ए-मुस्त़फ़ा से हसीं रु-ए-अनवर

    उन सा, पहले था कोई अब है होगा

    नबी सारे महबूब हैं किब्रिया के

    मगर ये भी सच है ब-जुज़ मुस्तफ़ा के

    हबीब-ए-ख़ुदा दोनों आलम का दिलबर

    उन सा, पहले था कोई अब है होगा

    बड़ाई में ‘पुरनम’ वो बाद अज़ ख़ुदा हैं

    शह-ए-अंबिया हैं, शह-ए-दोसरा हैं

    बशर उन के रुत़बे का, अल्लाह-हु-अकबर!

    पहले था कोई अब है होगा

    थे रुत्बे में पहले पर आख़िर में आए

    बशर उन के रुत्बे पे क़ुर्बान जाए

    मोहम्मद सा अफ़ज़ल मोहम्मद सा आख़िर

    उन सा, पहले था कोई अब है होगा

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