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दकनी सूफ़ी काव्य
क़िस्सा रूह-अफ़्ज़ा और रिज़वान-शाह
अव्वल नाम हक़ का ले बोलूँ सुख़नबूँद उस की तौहीद खोलूँ सुख़न
फ़ायज़
सूफ़ी लेख
क़व्वालों के क़िस्से
संगीतकार अपने पहले और बाद के युगों के बीच एक पुल का कार्य करते हैं। आने
सुमन मिश्रा
दकनी सूफ़ी काव्य
क़िस्सा परहेज़-गार-ओ-शैतान
कहूँ एक नसीहत अजब ख़ूब-तरपहले पंद सुनो जीव की कान धर
अली रहमती
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ग़ज़ल
मैं हूँ लाज़िम उल्फ़त को मुझ को लाज़िम उल्फ़त हैमैं हूँ अपनी ज़रूरत से मुझ से मेरी ज़रूरत है
मयकश अकबराबादी
कलाम
सूफ़ी तबस्सुम
क़िस्सा काव्य
हीर वारिस शाह
1. हमदअव्वल हमद ख़ुदाय दा विरद कीजे, इशक कीता सू जग्ग दा मूल मियां ।
वारिस शाह
ना'त-ओ-मनक़बत
ज़ेहन-ओ-दिल में आप की उल्फ़त की जो तनवीर हैहर घड़ी नज़रों में आक़ा आप की तस्वीर है