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कलाम
शकील बदायूँनी
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पढ़ पढ़ इ’ल्म हज़ार कताबाँ आ’लिम होए भारे हूहर्फ़ इक इ’श्क़ दा पढ़ न जाणन भुल्ले फिरन विचारे हू
सुल्तान बाहू
कलाम
पढ़ पढ़ इलम हज़ार कताबाँ आलिम होए भारे हूहर्फ़ इक इश्क़ दा पढ़ न जाणन भुल्ले फिरन विचारे हू
सुल्तान बाहू
ना'त-ओ-मनक़बत
जिस की हर बंदे के दिल में राह है या चाह हैतू ही वो अल्लाह है हाँ तू ही वो अल्लाह है
शाह अकबर दानापूरी
फ़ारसी कलाम
ऐ मुनव्वर-ए-हर-दो-आ'लम ज़े-आफ़ताब-ए-रू-ए-तूवय मोअ'त्तर-ए-मुल्क-ए-जाँ अज़ ज़ुल्फ़-ए-अंबर बू-ए-तू
असीरी लाहीजी
फ़ारसी कलाम
ऐ माह-ए-आ'लम सोज़-ए-मन अज़ मन चरा रंजीद:ईवै शम-ए’-शब अफ़्रोज़-ए-मन अज़ मन चरा रंजीद:ई
सादी शीराज़ी
ग़ज़ल
मिरा दिल न था अलम-आश्ना कि तिरी अदा पे नज़र पड़ीवो न जाने कौन सा वक़्त था कि बिना-ए-ख़ून-ए-जिगर पड़ी