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ग़ज़ल
राज़-ए-सर-बस्ता मोहब्बत के ज़बाँ तक पहुँचेबात बढ़ कर ये ख़ुदा जाने कहाँ तक पहुँचे
हफ़ीज़ होश्यारपुरी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ब-रौ ऐ तबीबम अज़ सर कि ख़बर ज़े-सर न-दारमब-ख़ुदा रहा कुनम जान कि ज़े-जान ख़बर न-दारम
हाफ़िज़
ग़ज़ल
तेरी खोज में बस्ती बस्ती जंगल जंगल छान फिरेजैसे हम अंजान गए थे वैसे ही अंजान फिरे
तुफ़ैल हुश्यारपुरी
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साखी
सूक्ष्म का अंग - बिन पाँवन की राह है बिन बस्ती का देस
बिन पाँवन की राह है बिन बस्ती का देसबिना पिंड का पुरूष है कहै 'कबीर' सँदेस
कबीर
ग़ज़ल
शाह अकबर दानापूरी
ग़ज़ल
इश्क़ में ऐ कोहकन क्या ज़ख़्म-ए-सर दरकार थाज़ख़्म-ए-दिल दरकार था ज़ख़्म-ए-जिगर दरकार था
आसी गाज़ीपुरी
शे'र
वो ऐ 'सीमाब' क्यूँ सर-ग़श्तः-ए-तसनीम-ओ-जन्नत होमयस्सर जिस को सैर-ए-ताज और जमुना का साहिल है
सीमाब अकबराबादी
कलाम
सँभल ऐ दिल किसी का राज़ बे-पर्दा न हो जाएये दीवानों की महफ़िल है कोई रुस्वा न हो जाए
अमीर बख़्श साबरी
बैत
ये काएनात कि जिस में तिरा जमाल भी है
ये काएनात कि जिस में तिरा जमाल भी हैहमारे हुस्न-ए-नज़र के सिवा कुछ और नहीं