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ना'त-ओ-मनक़बत
राह-ए-मंज़िल में ब-हरगाम परेशाँ है 'ज़फ़र'अब अ'ता उस को भी तस्कीन-दिल-ओ-जाँ करदे
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
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ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ ज़फ़र उन की करामत क्या करे कोई बयाँसर से पा तक इक करामत हैं शह-ए-तेग़-ए-अ’ली
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
ना'त-ओ-मनक़बत
मंक़बत जो लिख रहा है आज ये अदना 'ज़फ़र'ये भी है कोई करिश्मा ख़्वाजा-ए-अजमेर का
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
ग़ज़ल
शे'र के फ़न में 'ज़फ़र' मैं तो नहीं हूँ कामिलफ़ैज़ उठाते हैं मगर मुझ से सुख़न-दाँ कितने
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
ना'त-ओ-मनक़बत
वालिद-ए-हसनैन सरताज-ए-बुतूल-ए-फ़ातिमाया'नी दामाद-ए-शफ़ीअ' रोज़-ए-महशर हैं अ’ली
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
ना'त-ओ-मनक़बत
शरीअ'त के मोबल्लिग़ मा'रिफ़त के तर्जुमाँ तुम होये हक़ है मेरे मौला वारिस-ए-शाह-ए-ज़माँ तुम हो
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
रूबाई
उस वक़्त मिरे दिल के नगीने पे 'ज़फ़र'कुंदा ख़त-ए-तुग़रा में मदीना होगा
शाह ज़फ़र सज्जाद दानापुरी
शे'र
बहादुर शाह ज़फ़र
ना'त-ओ-मनक़बत
शाहों को भी वो औज 'ज़फ़र' मिल नहीं सकताजिस औज के मालिक हैं ग़ुलामान-ए-मोहम्मद