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Sufinama

इतने आ'ला इतने अफ़ज़ल इतने बरतर हैं अ'ली

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

इतने आ'ला इतने अफ़ज़ल इतने बरतर हैं अ'ली

ज़फ़र अंसारी ज़फ़र

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    इतने आ'ला इतने अफ़ज़ल इतने बरतर हैं अ'ली

    इ'ल्म के घर हैं नबी तो इ'ल्म के दर हैं अ'ली

    वालिद-ए-हसनैन सरताज-ए-बुतूल-ए-फ़ातिमा

    या'नी दामाद-ए-शफ़ीअ' रोज़-ए-महशर हैं अ’ली

    क्यूँ आख़िर अफ़ज़ल-ओ-आला हो उन का मर्तबा

    सरवर-ए-कौनैन की चादर के अंदर हैं अ'ली

    जल्वा-ए-हक़ जिन की चश्म-ए-हक़-नुमा से है अ'याँ

    जहाँ वालो जहाँ में वो क़लंदर हैं अ'ली

    सारे आ'लम में नहीं है आप सा कोई शुजाअ

    शेर-ए-हक़ जिन का लक़ब है वो दिलावर हैं अ'ली

    आज तक लौटा कोई उन के दर से ना-मुराद

    ऐसे दरिया-ए-सख़ावत फ़ैज़-गुस्तर हैं अ'ली

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