शरीअ'त के मोबल्लिग़ मा'रिफ़त के तर्जुमाँ तुम हो
रोचक तथ्य
منقبت درشان مخدوم جہاں حضرت شیخ شرف الدین احمد یحییٰ منیری (بہار شریف۔ ہندوستان)
शरीअ'त के मोबल्लिग़ मा'रिफ़त के तर्जुमाँ तुम हो
ये हक़ है मेरे मौला वारिस-ए-शाह-ए-ज़माँ तुम हो
तुम्हारे क्लिक के रशहात से रौशन है ये नुक्ता
यक़ीनन इलम-ओ-इरफ़ां के मुहीत बेकरां तुम हो
गुज़ारी ख़िदमत-ए-ख़लक़ ख़ुदा में ज़िंदगी जिस ने
मरे आक़ा, मरे मौला वो मख़दूम जहँ तुम हो
मिला इलम-ए-लदुन्नी जिस को दरबार अलहि से
वही अहल बसीरत, वाक़िफ़ राज़ निहाँ तुम हो
फ़क़ीरी में भी तुम्हारी रशक सुलतानी है अमोला
ज़मीं पर रह के भी अ'ज़्मत में मिसल आसमां तुम हो
तुम्हारी शख़्सियत आईना दीन इलाही है
रग हर कुफ्र-ओ-बिद्दत के लिए तेग़ रवां तुम हो
गिल इरफ़ाँ शगुफ़्ता हैं तुम्हारे दम से हर जानिब
''बिहार इक गुलिस्ताँ है और बहार गुलिस्ताँ तुम हो''
तुम्हारे ही तसव्वुर में अब इस के दिन गुज़रते हैं
ज़ीफ़र के क़ल्ब मुज़्तर के लिए राहत रसाँ तुम हो
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