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ग़ज़ल
ज़हे क़िस्मत पसंद-ए-ख़ातिर-ए-मुश्किल पसंद आयाअज़ल से छाँट कर लाए थे हम जो दिल पसंद आया
अशफ़ाक़ हुसैन मारहरवी
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विषय
दिल
दिल
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ग़ज़ल
निगराँ कभू न ये जानिब रुख़ दिल-फ़रेब परी रहीमिरी चश्म ता-निगह बसीं तिरी महव जल्वागरी रही
रासिख़ अज़ीमाबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
मदीने की ज़मीं पर सुब्ह का 'आलम पसंद आयासुकूत-ए-सब्ज़ा-ओ-गुल गिर्या-ए-शबनम पसंद आया
अबुल वफ़ा फ़सिही
शे'र
सदिक़ देहलवी
ग़ज़ल
शब-ए-असरा नक़ाब उट्ठा जो रुख़ से ना-गहाँ तेरातो ज़ाहिर हो गया 'आलम पे राज़-ए-कुन-फ़काँ तेरा
क़ातिल अजमेरी
ग़ज़ल
आ’लम-ए-मस्ती है आईना-ए-रुख़ रुख़-ए-पुर-नूर काबे-ख़ुदी में देखते हैं हम तमाशा नूर का
ख़्वाजा नासिरुद्दिन चिश्ती
कलाम
अनवर मिर्ज़ापुरी
कलाम
मेरे मह-जबीं ने ब-सद-अदा जो नक़ाब रुख़ से उठा दियाजो सुना न था कभी होश में वो तमाशा मुझ को दिखा दिया