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कलाम
शकील बदायूँनी
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ना'त-ओ-मनक़बत
सुनते हैं कि महशर में सिर्फ़ उन की रसाई हैगर उन की रसाई है तो जब तो बन आई है
अहमद रज़ा ख़ान
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ क़िब्लः-ए-ईमान-ए-मन गाहे नज़र बर मन फ़िगनऐ का'बः-ए-ईक़ान-ए-मन गाहे नज़र बर मन फ़िगन
लताफ़त वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
जिस रंग में ऐ यार मुझे तू नज़र आयाऐसा कोई गुल भी नहीं ख़ुश-रू नज़र आया
अब्दुल रहीम कुंज्पुरी
ग़ज़ल
उन के जल्वों ही में हो सिर्फ़ जो ऐ सोज़-ए-दरूँक्या मिलेगा मिरे चेहरे से नुमायाँ हो कर
मयकश अकबराबादी
कलाम
ताबिश कानपुरी
फ़ारसी कलाम
ऐ ’आरिफाँ रा पेशवा गाहे नज़र बर मन फ़िगनऐ आ'शिक़ाँ रा रहनुमा गाहे नज़र बर मन फ़िगन