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शे'र
मुज़्तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
राज़-ए-सर-बस्ता मोहब्बत के ज़बाँ तक पहुँचेबात बढ़ कर ये ख़ुदा जाने कहाँ तक पहुँचे
हफ़ीज़ होश्यारपुरी
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फ़ारसी कलाम
नक़ाब अज़ रू-ए-ऊ वा-बूद शब जाए कि मन बूदमज़े-हुस्नश शोर-ओ-ग़ौग़ा बूद शब जाए कि मन बूदम
औहदी
ना'त-ओ-मनक़बत
किसी शब ख़्वाब में जल्वः दिखा दो या-रसूलल्लाहमिरी सोई हुई क़िस्मत जगा दो या-रसूलल्लाह
उमर वारसी
शे'र
मोहब्बत के एवज़ रहने लगे हर-दम ख़फ़ा मुझ सेकहो तो ऐसी क्या सरज़द हुई आख़िर ख़ता मुझ से
हसरत मोहानी
ग़ज़ल
मोहब्बत के एवज़ रहने लगे हर-दम ख़फ़ा मुझ सेकहो तो ऐसी क्या सरज़द हुई आख़िर ख़ता मुझ से
हसरत मोहानी
कलाम
क़मर जलालवी
ग़ज़ल
मोहब्बत की नज़र करती है इक्सीर-ए-नज़र पैदामोहब्बत हो तो हो जाते हैं दिल पैदा जिगर पैदा