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ग़ज़ल
है शग़्ल-ए-तसव्वुर जो तेरा दम-ब-दम अपनासब कार से बढ़ कर है यही कार-ए-अहम अपना
शाह अमीन अहमद फ़िरदौसी
पद
इस दुनिया का रहना ऐसा दम का दम ज्यूँ रहे हबाब
इस दुनिया का रहना ऐसा दम का दम ज्यूँ रहे हबाबये ख़िल्क़त है सारी सी जैसे देखो ख़्वाब में ख़्वाब
कवि दिलदार
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ग़ज़ल
फ़ुग़ाँ के साथ लब तक दम-ब-दम आने से क्या हासिलदिल-ए-मुज़्तर को समझा दो कि घबराने से क्या हासिल
भोलानाथ माएल
ग़ज़ल
नहीं आती क़ज़ा मक़्तल में ख़ौफ़-ए-तेग़-ए-क़ातिल सेइलाही ख़ैर क्यूँ-कर दम तन-ए-बिस्मिल से निकलेगा
हशम लखनवी
कलाम
हबाब-आसा में दम भरता हूँ तेरी आश्नाई कानिहायत ग़म है इस क़तरे को दरिया की जुदाई का
ख़्वाजा हैदर अली आतिश
कलाम
यार की मर्ज़ी के ताबे' यार का दम-भर के देख'अर्ज़-ए-मतलब करके देखा तर्क-ए-मतलब करके देख
कामिल शत्तारी
ग़ज़ल
मैं चराग़-ए-ना-तवाँ हूँ कोई दम का मेहमाँ हूँमिरे सामने से उठ कर कोई एक पल न जाए
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
डरे क्यूँ मेरा क़ातिल क्या रहेगा उस की गर्दन परवो ख़ूँ जो चश्म-ए-तर से उम्र भर यूँ दम-ब-दम निकले