दम तिरी उल्फ़त-ए-पोशीदा का भरने वाले
दम तिरी उल्फ़त-ए-पोशीदा का भरने वाले
दिल जले सीना जले उफ़ नहीं करने वाले
इ'श्क़ में जी से गुज़रते हैं गुज़रने वाले
मौत की राह नहीं देखते मरने वाले
दाग़-ए-दिल से मिरे कहता है ये उस का जोबन
देख इस तरह उभरते हैं उभरने वाले
बज़्म-ए-मातम में कभी शब ही को आ जा छुप कर
ओ मिरे सोग के पर्दे में सँवरने वाले
फिर बहार आई है फिर हम को जुनूँ होता है
क्या दिन आए हैं फ़राग़त से गुज़रने वाले
दीदा-ओ-दिल में रक़ीबों के बसे हैं जा कर
मेरी आँखों से मिरे दिल में उतरने वाले
आख़िरी वक़्त भी पूरा न किया वादा-ए-वस्ल
आप आते ही रहे मर गए मरने वाले
फिर खिचेगी मय-ए-गुल-रंग चढ़ेंगे नश्शे
ख़ोशे अंगूर के रिंदो हैं उतरने वाले
उट्ठे और कूचा-ए-महबूब को पहुँचे आ'शिक़
ये मुसाफ़िर नहीं रस्ते में ठहरने वाले
बाम पर खोल के ज़ुल्फ़ों को वो ख़ुद कहते हैं
रास्ता बंद यही साँप हैं करने वाले
बहर-ए-हस्ती में जो डूबे तो अ'दम में निकले
पार उतर जाते हैं यूँ पार उतरने वाले
नज़्अ' में हम हैं ग़म-ए-इ'श्क़ ये चिल्लाता है
देख ग़ुर्बत में मुझे छोड़ न मरने वाले
दिल-ए-बे-ताब मगर आह कोई की तूने
रो उठे चींख़ के क्यूँ बात न करने वाले
अब मज़े उट्ठेंगे उठती है जवानी उन की
नख़्ल-ए-उम्मीद से दो फल हैं उतर ने वाले
क्यूँ रक़ीबों से जलूँ मैं कि ये सब हैं ऐ तुर्क
ज़िक्र मेरा तिरी सरकार में करने वाले
वक़्त-ए-इंकार ज़बाँ चलती है ख़ंजर की तरह
ख़ून इक़रार का करते हैं मुकरने वाले
जान देने को कहा उन से तो हँस कर बोले
तुम सलामत रहो हर रोज़ के मरने वाले
आब-ए-ख़ंजर को भी क़ातिल ने मुझे तरसाया
न दिए हल्क़ से दो घोंट उतरने वाले
मुर्दे पर मुर्दे मज़ारों में गड़ेंगे ता-हश्र
लाख मेहमान हों ये घर नहीं भरने वाले
तेग़-ओ-ख़ंजर से न झगड़ा सर-ओ-गर्दन का मिटा
चल दिए मोड़ के मुँह फ़ैसला करने वाले
नज़्अ' में क्या नज़र आता है कोई बर्क़-ए-जमाल
आँखें कर लेते हैं क्यूँ बंद ये मरने वाले
कभी दाग़ों के चमन पर भी नज़र हसरत से
ओ मिरे फूलों में फूलों से सँवरने वाले
जब मैं कहता हूँ कि मरता हूँ तो कहती है अजल
मर भी चुक अब कहीं ओ रोज़ के मरने वाले
नज़्अ' का वक़्त जो गुज़रा तो ख़ुशी क्या इस की
ऐसे सदमे अभी कितने हैं गुज़रने वाले
आसमाँ पर जो सितारे निकल आए तो 'अमीर'
याद आए मुझे दाग़ अपने उभरने वाले
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