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शबद
हरि जन वा मद के मतवारे
बास अकास घराघर भीतर बुंद झरै झलका रेचमकत चंद अनँद बढ़ो जिव सब्द सघन निरुवारे
धरनीदास जी
दोहरा
हम लोभी हैं दरस के जैसे चंद चकोर
हम लोभी हैं दरस के जैसे चंद चकोरहमरे मन कुछ और है तुम तो कठिन कठोर
अली हुसैन अशरफ़ी
नज़्म
शहरयारान-ए-क़ना’अत के थे अफ़सर चाँद
क़ुत्ब थे और जागुज़ीँ थे क़ुत्ब के मानिंद वोमिस्ल-ए-सूरज के नहीं फिरते थे दर-दर चाँद शाह
मौलाना अब्दुल ग़फ़्फ़ार
सूफ़ी लेख
बीसवीं सदी के चंद मशहूर क़व्वाल
बीसवीं सदी के चंद क़व्वाल चूँकि कुल हिंद शोहरत के मालिक रहे, इसलिए मैं उनमें से