Font by Mehr Nastaliq Web

शहरयारान-ए-क़ना’अत के थे अफ़सर चाँद

मौलाना अब्दुल ग़फ़्फ़ार

शहरयारान-ए-क़ना’अत के थे अफ़सर चाँद

मौलाना अब्दुल ग़फ़्फ़ार

MORE BYमौलाना अब्दुल ग़फ़्फ़ार

    रोचक तथ्य

    منقبت در شان حضرت چاند شاہ نقشبندی (ٹانڈہ-اتر پردیش)

    शहरयारान-ए-क़ना’अत के थे अफ़सर चाँद

    जिस तर्ह सब अख़्तरों का है ये अख़्तर चाँद शाह

    क़ुत्ब थे और जागुज़ीँ थे क़ुत्ब के मानिंद वो

    मिस्ल-ए-सूरज के नहीं फिरते थे दर-दर चाँद शाह

    बोरिया-ए-फ़क़्र पर बैठे वो ऐसे शौक़ से

    ता-दम-ए-मुर्दन उट्ठे उस से दम भर चाँद शाह

    थी क़ना'अत और तवक्कुल आप की रूही ग़िज़ा

    कुछ नहीं रखते थे हिर्स-ए-ला’ल-ओ-गौहर चाँद शाह

    गंज-ए-क़ारूँ गर कोई देता रखते अपने पास

    साफ़ कर देते थे दम-भर में लुटा कर चाँद शाह

    फेंकते ख़ाशाक के मानिंद अपने हाथ से

    बे-तकल्लुफ़ कीसा-ए-ला’ल-ओ-दर-ओ-ज़र चाँद शाह

    ख़र्च उन का देख कर कहते थे दुनिया-दार यूँ

    दस्त-ए-ग़ैब उन को है या हैं कीमिया-गर चाँद शाह

    इत्तिबा’-ए-सुन्नत-ए-नबवी का ऐसा था ख़याल

    बर-ख़िलाफ़ उस के चलते मू बराबर चाँद शाह

    'आशिक़-ए-सुन्नत थे नफ़रत थी उन्हें बिद’अत से सख़्त

    जानते थे बिद’अती को ख़र से बद-तर चाँद शाह

    क्या मजाल उस को कि रक्खे दिल में दुनिया की हवस

    शौक़ से पूरी तवज्जोह करते जिस पर चाँद शाह

    सैकड़ों को कर दिया दरवेश-ए-कामिल आप ने

    क्यूँ हो कामिल थे और कामिल के अफ़सर चाँद शाह

    आप का दिल आईना से भी ज़्यादा साफ़ था

    बिल-यक़ीं अनवार-ओ-’इरफ़ाँ के थे मंज़र चाँद शाह

    देखते थे आईना की तरह अनवार-ए-ख़ुदा को

    रखते थे पहलू में ऐसा क़ल्ब-ए-अनवार चाँद शाह

    Additional information available

    Click on the INTERESTING button to view additional information associated with this sher.

    OKAY

    About this sher

    Close

    rare Unpublished content

    This ghazal contains ashaar not published in the public domain. These are marked by a red line on the left.

    OKAY
    बोलिए