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ग़ज़ल
ये जो लगा है तीर मुझे ऐ कमान-ए-इश्क़महशर में देखियो यही होगा निशान-ए-इश्क़
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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विषय
आ’शिक़
आशिक़
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शे'र
कहियो ऐ क़ासिद पयाम उस को कि तेरे हिज्र सेजाँ-ब-लब पहुँचा नहीं आता है तू याँ अब तलक
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ग़ज़ल
आह फिर तुझ को ऐ बे-रहम ख़बर करते हैंया'नी आ जा दम-ए-आख़िर है सफ़र करते हैं
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
इ’श्क़ अदा-नवाज़-ए-हुस्न हुस्न करिश्मा-साज़-ए-इश्क़आज से क्या अज़ल से है हुस्न से साज़-बाज़-ए-इ’श्क़
बेदम शाह वारसी
शे'र
बेदम शाह वारसी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ज़हे 'इश्क़ ज़हे 'इश्क़ कि मा रास्त ख़ुदायाचे नग़्ज़स्त-ओ-चे ख़ूबस्त-ओ-चे ज़ेबास्त ख़ुदाया
रूमी
कलाम
शक्ल आँखों में मिरी जल्वा-नुमा किस की हैपर्दा-ए-दिल से जो निकली ये सदा किस की है