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ग़ज़ल
जब 'इश्क़ हदों से बढ़ता है क्या दर्द की रातें होती हैंसाए से इशारे होते हैं परछाईं से बातें होती हैं
फ़ज़्ल नक़वी
ग़ज़ल
दिल तो मिरा असीर है छेड़ेगा कौन साज़-ए-’इश्क़जितना छुपेगा राज़-ए-हुस्न उतना खुलेगा राज़-ए-’इश्क़
फ़ज़्ल नक़वी
ग़ज़ल
जबीन-ए-'फ़ज़्ल' झुकती है तो अनवार-ए-हक़ीक़त मेंजो सज्दा है वो रूह-ए-आस्ताँ मा'लूम होता है
फ़ज़्ल नक़वी
बैत
मस्जिद में मय-कदे में कोई फ़ास्ला न हो
मस्जिद में मय-कदे में कोई फ़ास्ला न होउतरा अगर नशा तो पढ़ेंगे नमाज़ हम
सय्यद फ़ैज़ान वारसी
ग़ज़ल
राज़-ए-जमाल-ए-आफ़्ताब ज़र्रे समझ सकेंगे क्यामैं हूँ कि तू है हुस्न-ए-दोस्त कौन है ख़ुद-नुमा न पूछ
बहज़ाद लखनवी
शे'र
बुलबुल सिफ़त ऐ गुल-बदन इस बाग़ में हर सुब्हतेरी बहारिस्तान का दीवाना हूँ दीवाना हूँ
क़ादिर बख़्श बेदिल
शे'र
जल्वा-ए-हर-रोज़ जो हर सुब्ह की क़िस्मत में थाअब वो इक धुँदला सा ख़्वाब-ए-दोश है तेरे बग़ैर
सीमाब अकबराबादी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
गर तमअ' दारी अज़ाँ जाम-ए-मुरस्सा'-ए-मय-ए-ला'लदुर्र-ओ-याक़ूत ब-नोक-ए-मिज़ा-अत बायद सुफ़्त
हाफ़िज़
बैत
शाम-ए-ग़म गुज़री नुमायाँ हो चले आसार-ए-सुब्ह
शाम-ए-ग़म गुज़री नुमायाँ हो चले आसार-ए-सुब्हओढ़ ली लैला-ए-शब ने चादर-ए-ज़र-तार-ए-सुब्ह
मुज़तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
दलील-ए-सुब्ह रौशन है सियह शाम-ए-अलम साक़ीख़ुदा का बा'द हर मुश्किल के होता है करम साक़ी