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कलाम
फ़िराक़ गोरखपुरी
शे'र
अज़ीज़ वारसी देहलवी
शे'र
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
कुंडलिया
गुरुदेव - हाथी घोड़ा ख़ाक है कहै सुनै सो ख़ाक
हाथी घोड़ा ख़ाक है कहै सुनै सो ख़ाककहै सुनै सो ख़ाक ख़ाक है मुलुक खजाना
पलटू साहेब
ग़ज़ल
ये ज़र्रे जिन को हम ख़ाक-ए-रह-ए-मंज़़िल समझते हैंज़बान-ए-हाल रखते हैं ज़बान-ए-दिल समझते हैं
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
क्यूँ कर मैं ख़ाक डालूँ सोज़-ए-दिल-ए-तपाँ परमानिंद-ए-शम्अ' मेरा कब हुक्म है ज़बाँ पर