परिणाम "tilism e hoshruba volume 004 munshi ahmad hussain qamar ebooks"
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सब खुल गया तिलिस्म जहाँ का जो राज़ थाजिस पर्दे को उठाया वही पर्दा-साज़ था
ऐ हुस्न-ए-जहाँ सोज़-ए-जहाँ दीद-ए-जहाँ दादतश्बीह तेरी अहल-ए-क़लम ढूँढ रहे थे
'सरमद' चू तिलिस्म रा कि दर वा कर्दमदर शाम दरिच:-ए-सहर वा कर्दम
ऐ रश्क-ए-क़मर आगे तिरे शम्स-ओ-क़मर क्यासौ जाँ से फ़िदा हूँ मैं ये है जान-ओ-जिगर क्या
'क़मर' यूँ तो नबी सारे क़मर हैंमगर जो साहिब-ए-शक़्क़ुल-क़मर हो
रोता है 'अबस ऐ ख़स्ता-जिगर आ के अदब से ’अर्ज़-ए-क़मरपूरे हों मिरे अरमान-ए-दिली सुल्तान-उल-हिंद ग़रीब-नवाज़
मिटाया उफ़ क़मर से नौजवाँ कोन आया रह्म मर्ग-ए-ना-गिहाँ को
ज़िया-ए-मेहर है नूर-ए-क़मर हेजमाल-ए-यार हर-सू जल्वः-गर है
उस तिल्सम-ए-दहर में हैं सूरत-ए-दीवाना हमहो गए सिर्फ़ तलाश-ए-वुस्अ'त-ए-वीराना हम
ना'त-ए-अहमद लिखूँ मुझ में क़ुदरत कहाँमैं कहाँ मेरे आक़ा की मिदहत कहाँ
गुंजाइश-ए-ख़याल तिलिस्म-ए-जहाँ कहाँआँखों में जिस के जल्वा-ए-हक़ है बसा हुआ
'क़मर' मैं हूँ मुख़्तार तंज़ीम-ए-शब काहैं मेरे ही बस में अँधेरे उजाले
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