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शे'र
सताता है मुझे सय्याद ज़ालिम इस लिए शायदकि रौनक़ उस के गुलशन की मिरे शग़्ल-ए-फ़ुग़ाँ तक है
वली वारसी
ग़ज़ल
क़ाबिल बांदवी
ग़ज़ल
क्या जानें किस अंदाज़ से ज़ालिम ने नज़र कीहालत ही दिगर-गूँ है मिरे क़ल्ब-ओ-जिगर की
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
शे'र
इन्हें आँसू समझ कर यूँ न मिट्टी में मिला ज़ालिमपयाम-ए-दर्द-ओ-दिल है और आँखों की ज़बानी है
जिगर मुरादाबादी
ग़ज़ल
ये नज़र की ज़द है ज़ालिम मिरा दम निकल न जाएमुझे सिर्फ़ उस का डर है कि ये तीर चल न जाए
पीर नसीरुद्दीन नसीर
कलाम
अपने दीवाने को ज़ालिम इस तरह तड़पा न अबमस्त नज़रों से पिला कर कह भी दे दीवाना अब
अब्दुल ख़ालिक़ दानिश
कलाम
ये किस बे-दर्द किस ज़ालिम पर अपना दम निकलता हैये रह रह कर कलेजा चुटकियों से कौन मलता है
अमीर मीनाई
शे'र
वफ़ा की हो किसी को तुझ से क्या उम्मीद ओ ज़ालिमकि इक आलम है कुश्त: तेरी तर्ज़-ए-बेवफ़ाई का
इब्राहीम आजिज़
शे'र
चला आता है जो सय्याद-ए-ज़ालिम दाम-ए-गेसू लेकि शायद आहू-ए-दिल कूँ करेगा ओ शिकार आख़िर