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सूफ़ी लेख
महफ़िल-ए-समाअ’ और सिलसिला-ए-वारसिया
फ़ी ज़मानिना दुनिया में जितने भी सलासिल हैं उनमें बेशतर सिलसिलों में महफ़िल-ए-समाअ’ का चलन राइज
डॉ. कबीर वारसी
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह अहमद हुसैन चिश्ती शैख़पूरवी
हज़रत शाह अहमद हुसैन चिश्ती आलिम दीन,फ़ाज़िल ए मतीन और साहिब ए यक़ीन बुज़ुर्ग हैं। उनकी
रय्यान अबुलउलाई
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हज़रत शैख़ अ’लाउ’द्दीन क़ुरैशी-ग्वालियर में नवीं सदी हिज्री के शैख़-ए-तरीक़त और सिल्सिला-ए-चिश्तिया के बानी - सरदार रज़ा मुहम्मद
हर दो कुतुब ‘ग़मगीन रहि• अकादमी’ में मौजूद हैं। जिल्द 564 और 592। लेकिन ये कैसी
सूफ़ीनामा आर्काइव
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वेदान्त - मैकश अकबराबादी
संहिता या’नी चारों वेदों के बा’द जो किताबें वेदिक अदब में क़ाबिल-ए-एहतिराम हैं वो बरहमन हैं
मयकश अकबराबादी
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन मुनएमी
“जनाब सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन अ’लैहिर्रहमत क़रीब में आपके बैठे हुए थे और ये मुर्शिद के पोते
रय्यान अबुलउलाई
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क़व्वाली की ज़बान
उर्दू हमारी मुशतर्का तहज़ीब की नाक़ाबिल-ए-फ़रामोश ज़बान है । इसने क़ौमी शुऊर के फ़रोग़ में वो
अकमल हैदराबादी
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चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
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हिन्दुस्तानी मौसीक़ी और अमीर ख़ुसरौ
‘‘कहा जाता है कि सामगाँ में पहले तीन सुरों का इस्तिमाल किया जाता था जिस को