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सूफ़ी लेख
अबू मुग़ीस हुसैन इब्न-ए-मन्सूर हल्लाज - मैकश अकबराबादी
आँसू मेरी आँखों से जारी हैंजिस तरह
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी लेख
हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल
इ’श्क़ उसको भी तिरी दरगाह की रिफ़अ’त से हैआह ये अंजुम नहीं आँसू हैं चश्म-ए-माह के
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
देव और बिहारी विषयक विवादः उपलब्धियाँ- किशोरी लाल
मिश्रबंधुओं का पाठः (क) बड़े बड़े नैननि ते आँसू भरि भरि ढरि,गोरो गोरो मुख आज ओरो सो बलाने जात।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
ईद वाले ईद करें और दीद वाले दीद करें
सूफ़ी-संतों के यहाँ हिज्र की भी उतनी ही लज्जत है जितनी विसाल की. सूफ़ी ऐसा मानते
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
कबीर दास
दुखिया दास कबीर है जागै और रोवैसारी दुनिया ख़ुशी की ज़िंदगी बसर करती है आराम से
ज़माना
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगान हज़रत ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती अजमेरी - आ’बिद हुसैन निज़ामी
ये 582 हिज्री की बात है।निशापुर के क़रीब क़स्बा हारून में वक़्त के एक मुर्शिद-ए-कामिल ने
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
पदमावत के कुछ विशेष स्थल- श्री वासुदेवशरण
पहला अर्थ (नागमती के पक्ष में)(1) अब मेरे शरीर में विरह की जेठ-असाढ़ी तपने लगी है।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया-अपने पीर-ओ-मुर्शिद की बारगाह में
पेश-ए-सियादत-ए-ग़मत रूह चे नुत्क़ मी-ज़नदउस शे’र को बार बार पढ़ते रहे और बे-ख़ुदी सी तारी हो
निसार अहमद फ़ारूक़ी
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो बुज़ुर्ग और दरवेश की हैसियत से - मौलाना अ’ब्दुल माजिद दरियाबादी
सोज़-ए-दिल और ज़ौक़-ए-इ’बादत का आ’लम ये था कि पिछली रात नमाज़ पढ़ने खड़े होते तो सात
फ़रोग़-ए-उर्दू
सूफ़ी लेख
भ्रमर-गीतः गाँव बनाम नगर, डॉक्टर युगेश्वर
कथा निरगुन-ग्यान सूको राजनीति प्रबन्ध।मथुरा में कृष्ण की भेंट जिस स्त्री से हुई वह कुब्जा थी।
सूरदास : विविध संदर्भों में
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी तहज़ीब की तश्कील में अमीर ख़ुसरो का हिस्सा - मुनाज़िर आ’शिक़ हरगानवी
तोते के बारे में कहते हैं कि इस मुल्क के तोते आदमी की तरह बोलते हैं।
फ़रोग़-ए-उर्दू
सूफ़ी लेख
बक़ा-ए-इन्सानियत में सूफ़ियों का हिस्सा (हज़रत शाह तुराब अ’ली क़लंदर काकोरवी के हवाला से) - डॉक्टर मसऊ’द अनवर अ’लवी
मुनादी
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हज़रत शैख़ सदरुद्दीन आ’रिफ़ रहमतुल्लाह अ’लैह
ख़ुद अमीर ख़ुसरो शहज़ादा मुहम्मद सुल्तान के साथ मुगलों की मुहिम में थे, और शहज़ादा की
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
इस खेल ही खेल में इतनी बड़ी बात पैदा हो गई है, जिसे प्रेम कहते हैं।