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सूफ़ी लेख
आगरा में ख़ानदान-ए-क़ादरिया के अ’ज़ीम सूफ़ी बुज़ुर्ग
जब हुस्न-ए-अज़ल पर्दा-ए-इम्कान में आया
बे-रँग ब-हर रँग हर एक शान में आया
फ़ैज़ अली शाह
सूफ़ी लेख
शैख़ सा’दी का तख़ल्लुस किस सा’द के नाम पर है ?
तू नीज़ ग़ायत-ए-इम्कान अज़ ऊ दरेग़ म-दार
कि आँ न-माँद-ओ-ईं ज़िक्र-ए-जावेदाँ मांद
एजाज़ हुसैन ख़ान
सूफ़ी लेख
लिसानुल-ग़ैब हाफ़िज़ शीराज़ी - मोहम्मद अ’ब्दुलहकीम ख़ान हकीम।
आ’लम-ए-अम्र वो है जो कुन से पैदा हुआ है और आ’लम-ए-ख़ल्क़ वो है जो उससे मा-बा’द
निज़ाम उल मशायख़
सूफ़ी लेख
बक़ा-ए-इंसानियत के सिलसिला में सूफ़िया का तरीक़ा-ए-कार- मौलाना जलालुद्दीन अ’ब्दुल मतीन फ़िरंगी महल्ली
फ़क़ीर ने इस मक़ाला में अंबिया को सूफ़ियों का सरदार लिखा है और मोहम्मद सल्लल्लाहु अ’लैहि
मुनादी
सूफ़ी लेख
समाअ’ और आदाब-ए-समाअ’- मुल्ला वाहिदी देहलवी
समाअ’ की तीन किस्में हैं।एक समाअ’ तमाशे और खेल के तौर पर सुना जाए। तमाशा और
मुनादी
सूफ़ी लेख
तल्क़ीन-ए-मुरीदीन-हज़रत शैख़ शहाबुद्दीन सुहरवर्दी
जब मुरीद-ए-सादिक़ शैख़ की ख़िदमत में रहे तो उसका अदब ये है कि वो अपने इरादे