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सूफ़ी लेख
सूफ़ी क़व्वाली में गागर
साक़िया मुर्शिद-ए-कामिल है हमारा रिंदोंमय-ए-वहदत से है लबरेज़ हमारी गागर
उमैर हुसामी
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा बुज़ुर्ग शाए’र के लिबास में - ख़्वाजा मा ’नी अजमेरी
गंज बख़्श-ए-फ़ैज़-ए-आ’लम मज़हर-ए-नूर-ए-ख़ुदानाक़िसाँ रा पीर-ए-कामिल कामिलाँ रा रहनुमा
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ अबुल हसन अ’ली हुज्वेरी रहमतुल्लाह अ’लैहि
गंज-बख़्श-ए-हर दो-आ’लम मज़हर-ए-नूर-ए-ख़ुदाकामिलाँ रा हुनर-ए-कामिल नाक़िसाँ रा राहनुमा
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
आगरा में ख़ानदान-ए-क़ादरिया के अ’ज़ीम सूफ़ी बुज़ुर्ग
आ’रिफ़-ए-कामिल वली इब्न-ए-वली क़ुतुब-ए-दींआ’लिम इ’ल्म-ए-नबी काशिफ़-ए-राज़-ए-अ’ली
फ़ैज़ अली शाह
सूफ़ी लेख
उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
मय-कशी के फ़न में भी ‘मय-कश’ ना तू कामिल हुआमय-कदे में आके नाहक़ भीड़ मेरे यार की
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
हज़रत शाह वजीहुद्दीन अलवी गुजराती
’अर्श बर तरह कर्द अज़ हिम्मतबर सर-ए-क़ब्र-ए-मुर्शिद-ए-कामिल
मआरिफ़
सूफ़ी लेख
हज़रत मख़दूम अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी के जलीलुल-क़द्र ख़ुलफ़ा - सय्यद मौसूफ़ अशरफ़ अशरफ़ी
सूफ़ीनामा आर्काइव
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ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगान हज़रत ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती अजमेरी - आ’बिद हुसैन निज़ामी
ये 582 हिज्री की बात है।निशापुर के क़रीब क़स्बा हारून में वक़्त के एक मुर्शिद-ए-कामिल ने