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सूफ़ी लेख
अमीर खुसरो- पद्मसिंह शर्मा
गुफ़्ती अंदर ख़्वाब गह गह रूए खु़द बनुमायमत्,ई सुख़न बेगान: रा गो काश आँ रा ख़्वाब नेस्त।
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत सय्यिद मेहर अ’ली शाह - डॉक्टर सय्यिद नसीम बुख़ारी
यूं मौलाना सुल्तान महमूद ने इस वाक़िआ’ की तलाफ़ी की जब उनके घोड़े की लगाम पीर
मुनादी
सूफ़ी लेख
अस्मारुल-असरार - डॉक्टर तनवीर अहमद अ’ल्वी
किसी आ’रिफ़ की नज़र उस दिल-आवेज़ मंज़र पर पड़ी।उसने उनकी दिलचस्प गुफ़्तुगू को सुना।उसके शौक़ ने
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
गुरु बाबा नानक जी - अ’ल्लामा सर अ’ब्दुल क़ादिर
“रहम को मस्जिद बना ईमान और सच्चाई की जा-नमाज़ ले,इंसाफ़ को अपनी मुक़द्दस किताब समझ,मीठा चलन
मुनादी
सूफ़ी लेख
कबीर दास
चूँकि भाषा शाइ’री में उ’मूमन औ’रत की तरफ़ से, इज़्हार-ए-ज्ज़बात किया जाता है इसलिए कबीर दास
ज़माना
सूफ़ी लेख
मंसूर हल्लाज
ऐ काश कसे हर आँ चे हस्तम दानद।।क़त्ल के हालात ये हैं कि जब उन्हें मक़्तल
निज़ाम उल मशायख़
सूफ़ी लेख
शम्स तबरेज़ी - ज़ियाउद्दीन अहमद ख़ां बर्नी
निकल्सन दौलत शाह की ज़बानी बयान करता है कि मौलाना ने अक्सर ग़ज़लें शम्स की गैर