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सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह ग़फ़ूरुर्रहमान हम्द काकवी
आदमी हूँ मेरी अस्लिय्यत है अकबर भूल चूकहै ख़ता मेरे लिए मैं हूँ ख़ता के वास्ते
रय्यान अबुलउलाई
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ख़्वाजा बुज़ुर्ग शाए’र के लिबास में - ख़्वाजा मा ’नी अजमेरी
मा जुर्म-ओ-ख़ता कुनेम ऊ लुत्फ़-ओ-अ’ताहर कस चीज़े कि लाएक़-ए-ऊस्त कुनद
सूफ़ीनामा आर्काइव
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लिसानुल-ग़ैब हाफ़िज़ शीराज़ी - मोहम्मद अ’ब्दुलहकीम ख़ान हकीम।
हाफ़िज़ ने सुल्तान की आवाज़ पहचान कर झट जवाब दिया।‘दर अ’ह्द-ए-पादशाह-ए-ख़ता-बख़्श-ओ-जुर्म-पोश’
निज़ाम उल मशायख़
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बक़ा-ए-इंसानियत के सिलसिला में सूफ़िया का तरीक़ा-ए-कार- मौलाना जलालुद्दीन अ’ब्दुल मतीन फ़िरंगी महल्ली
मुनादी
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हिन्दुस्तानी तहज़ीब की तश्कील में अमीर ख़ुसरो का हिस्सा - मुनाज़िर आ’शिक़ हरगानवी
फ़रोग़-ए-उर्दू
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अमीर ख़ुसरो - तहज़ीबी हम-आहंगी की अ’लामत - डॉक्टर अनवारुल हसन
व या ख़ुद सायः-इ या माहताबेस्त।।यहाँ का एक कपड़ा तो ऐसा बारीक होता है कि अगर
सूफ़ीनामा आर्काइव
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सतगुरू नानक साहिब
जिस्म की नज़र आने वाली आँख तस्वीर खींचने का कैमरा है,रास्ता दिखाने का वसीला है लेकिन