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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
चातुर मरद जो हाथ लगावे। खोल सतर वह आप दिखावे।।-पुस्तक
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
चातुर मरद जो हाथ लगावे। खोल सतर वह आप दिखावे।। -पुस्तक
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत गेसू दराज़ का मस्लक-ए-इ’श्क़-ओ-मोहब्बत - तय्यब अंसारी
चुप रह निजी बावरे छुपा खोल सत भेददेख पिया को हर जगह गर है तुझको दीद
मुनादी
सूफ़ी लेख
औघट शाह वारसी और उनका कलाम
‘औघट’ गुरु दया करें तो पल में निर्गुण होईकान खोल ‘औघट’ सुनो पिया मिलन की लाग
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल
उड़ न जाए ये कहीं पर खोल कर मिंक़ार सेगिर्या-ए-शब्नम पे गुल हँसते हैं क्या बे-दर्द हैं
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
सन्तों की प्रेम-साधना- डा. त्रिलोकी नारायण दीक्षित, एम. ए., एल-एल. बी., पीएच. डी.
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो - तहज़ीबी हम-आहंगी की अ’लामत - डॉक्टर अनवारुल हसन
व या ख़ुद सायः-इ या माहताबेस्त।।यहाँ का एक कपड़ा तो ऐसा बारीक होता है कि अगर
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा मीर दर्द और उनका जीवन
जिस तरफ़ तू ने आँख भर देखाख़्वाजा मीर दर्द ने जो कुछ भी कहा है वह
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगान हज़रत ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती अजमेरी - आ’बिद हुसैन निज़ामी
बा’द अज़ाँ क़ैंची लेकर दुआ’-गो के सर पर चलाई और गलीम-ए-ख़ास अ’ता फ़रमाई। फिर इर्शाद हुआ।
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
ईद वाले ईद करें और दीद वाले दीद करें
सूफ़ी संतों के यहाँ ईद का उल्लेख कई अर्थों में हुआ है. चाहे वह समाअ’ को
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
हज़रत मख़दूम अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी के जलीलुल-क़द्र ख़ुलफ़ा - सय्यद मौसूफ़ अशरफ़ अशरफ़ी
आप हेरात के अमीर और सुल्तान तैमूर के लशकर के अफ़सर थे।जब हज़रत तुर्किस्तान तशरीफ़ ले
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा ग़ुलाम हुसैन अहमद अल-मा’रूफ़ मिर्ज़ा सरदार बेग हैदराबादी
सोता क्या पड़ा सजन दीवाने उठ बहार आईएक बार आँख खोल दिए। क्या देखते हैं कि
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत मख़दूम हुसैन ढकरपोश
आपकी दरगाह के तअ’ल्लुक़ से मूनिसुल-क़ुलूब के जामे’ क़ाज़ी शह बिन ख़त्ताब बिहारी की राय मुलाहज़ा
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
Krishna as a symbol in Sufism
तुराब के काव्य में कृष्ण के लौकिक तथा पारलौकिक अनेक प्रकार के रंग हैं । वह
बलराम शुक्ल
सूफ़ी लेख
निरंजनी साधु
हरीसिंह जी गोरखनाथ जी को एक पेड़ से बाँध कर घरवालों से पूछने गये तो उन्होंने