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सूफ़ी लेख
मयकश अकबराबादी जीवन और शाइरी
“जिस महफ़िल में मयकश मौजूद हों उस में, मैं सदारत करूँ ये मुझे गवारा नहीं।”जिगर मुरादाबादी
सुमन मिश्रा
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क़ुतुबल अक़ताब दीवान मुहम्मद रशीद उ’स्मानी जौनपूरी
जब तक अपने हाथ से काम होता रहे दूसरों से लेना बेहतर नहीं दोस्तों की सोहबत
हबीबुर्रहमान आज़मी
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हज़रत शैख़ फ़ख़्रुद्दीन इ’राक़ी रहमतुल्लाह अ’लैह
अ’दन में पज़ीराईः-अ’दन का सुल्तान उनकी शोहरत सुन चुका था और उनकी शाइ’री का मो’तक़िद था।चुनाँचे
सूफ़ीनामा आर्काइव
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ख़्वाजा-ए-ख़्वाजगान हज़रत ख़्वाजा मुई’नुद्दीन चिश्ती अजमेरी - आ’बिद हुसैन निज़ामी
हज़रत ने फ़रमाया कि मैं इस ग़रीब के काम के लिए आया हूँ। फिर क़ुतुब साहिब
सूफ़ीनामा आर्काइव
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चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
(2) हज़रत गेसू-दराज़ को एक ऐसे दौर में काम करना पड़ा था जब अफ़्क़ार-ओ-नज़रियात का ज़बरदस्त
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
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तजल्लियात-ए-सज्जादिया
आज के इस पुर-फ़ितन दौर में ख़ानक़ाहों की अ’ज़्मतें पामाल हो रही हैं और सियासी मफ़ाद
अहमद रज़ा अशरफ़ी
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मंसूर हल्लाज
हज़रत मंसूर हमेशा से बड़े आ’बिद,ज़ाहिद शख़्स थे। एक मा’मूल उनका ये था कि दिन-रात में
निज़ाम उल मशायख़
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ताजुल-आ’रिफ़ीन मख़दूम शाह मुजीबुल्लाह क़ादरी – हकीम शुऐ’ब फुलवारवी
उस वक़्त आपके हम-उ’म्रों और क़राबत-मंदों में से एक बुज़ुर्ग हज़रत शाह मोहम्मद मख़्दूम क़ादरी जा’फ़री
निज़ाम उल मशायख़
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हज़रत मुल्ला बदख़्शी- पंडित जवाहर नाथ साक़ी देहलवी
उसके बा’द जब कभी बादशाह सैर-ए-कश्मीर को जाता तो आपके फ़ैज़-ए-सोहबत की सआ’दत हासिल किया करता
निज़ाम उल मशायख़
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क़व्वाली के मज़ामीन
क़व्वाली का ‘अह्द-ए-ईजाद वो ‘अह्द है जब कि मौसीक़ी का इस्तिमाल मुसलमानों में सख़्त मौज़ू-ए- बह्स
अकमल हैदराबादी
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हज़रत बख़्तियार काकी रहमतुल्लाहि अ’लैह - मोहम्मद अल-वाहिदी
इसी क़िस्म के और बहुत वाक़िआ’त पेश आते रहे लेकिन वो सब इस छोटे से मज़मून
निज़ाम उल मशायख़
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तज़्किरा पद्म श्री अ’ज़ीज़ अहमद ख़ाँ वारसी क़व्वाल
आ’ला क़व्वाली का दार-ओ-मदार आ’ला शेरी इंतिख़ाब पर होता है और आ’ला शे’र आ’म मूसीक़ी को
अकमल हैदराबादी
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह ग़फ़ूरुर्रहमान हम्द काकवी
ख़ुद लिखते हैं ”जब चार साल की उ’म्र हुई तो मेरे हक़ीक़ी मामूँ क़ाज़ी अहमद बख़्श