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सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
ग़ालिबन इसी उसूल को मद्द-ए-नज़र रखते हुए उ’र्फ़ी ने बहुत कम क़साएद लिखे और जो क़साएद
ज़माना
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा बुज़ुर्ग शाए’र के लिबास में - ख़्वाजा मा ’नी अजमेरी
दूसरे सवाल के जवाब में ब-तकल्लुफ़ ये कहना पड़ेगा कि मुल्ला मुई’न काशफ़ी के दीवान की
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
तज़्किरा-ए-फ़ख़्र-ए-जहाँ देहलवी
(वरक़11-12)एक-बार रुख़्सत होने से तीन दिन पहले सुब्ह की नमाज़ से क़ब्ल हज़रत मख़दूम शकर बार
निसार अहमद फ़ारूक़ी
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बुर्हानुद्दीन ग़रीब
4. मौलाना हमीद शाइ’र-ए-क़लंदर ने भी ग़ालिबन मल्फ़ूज़ात का कोई मज्मुआ’ तय्यार किया था।राक़िम को उन
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
अमीर खुसरो- पद्मसिंह शर्मा
इस में खु़सरों ने किसी मदमाती युवती की गति को कबूतर की मस्ताना चाल से उपमा
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
शम्स तबरेज़ी - ज़ियाउद्दीन अहमद ख़ां बर्नी
दीगर अँग्रेज़ी-दाँ ख़ुद्दाम की तरह बर्नी भी उन अंग्रेज़ी किताबों को मुतालआ’ में रखना ज़्यादा पसंद
ख़्वाजा हसन निज़ामी
सूफ़ी लेख
फ़िरदौसी - सय्यद रज़ा क़ासिमी हुसैनाबादी
“फ़िरदौसी ने अपने मुल्क को अदबियात से ख़ाली पाया और उसने एक ऐसी नज़्म छोड़ी है
ज़माना
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा साहब पर क्या कहती हैं पुरानी किताबें?
ख़्वाजा मोईनुद्दीन चिश्ती का तज़्किरा फ़वाइद-उल-फ़ुवाद में इस तरह से नहीं किया गया है, जिस तरह