आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "जस"
सूफ़ी लेख के संबंधित परिणाम "जस"
सूफ़ी लेख
जायसी और प्रेमतत्व पंडित परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल्.-एल्. बी.
चोर बैठ जस सेंधि सँवारी। जुआ पैंत जस लाव जुआरी।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
मुकर मांहि जस छाई।तैसे ही हरि बसै निरंतर,
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
उदासी संत रैदास जी- श्रीयुत परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल-एल. बी.
जाको जस गावै लोक।। भगनि हेतु भगता के चले।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
समर्थ गुरु रामदास- लक्ष्मीधर वाजपेयी
गावहिं हरि जस कलिमलहारी। कीन्हें प्राकृत-जन-गुन-गाना,
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
दोहा:बिन हल्ला गुल कुछ नहीं जस जीवन बिन प्राण
ज़माना
सूफ़ी लेख
पदमावत में अर्थ की दृष्टि से विचारणीय कुछ स्थल - डॉ. माता प्रसाद गुप्त
(44) 117.1 नाभी कुंडर मलै समीरू। समुंद भँवर जस भँवै गंभीरू।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
महाराज तिनके भए जिनकौ जस अवदात। रायपंजाब सपूतमगि उपजे तिनके तात।।21।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
कूरम कुल अवतस हस के बस उजागर। रामसिंघ नरनाह सूग्ता जस कौ सागर।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कबीरपंथी और दरियापंथी साहित्य में माया की परिकल्पना - सुरेशचंद्र मिश्र
बीजक, पृ. 135 सेमर फूल जस किरुवां आवा। देखि फूल बहु हरष बढ़ावा।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
है सूरज महाराज कै तनुज तीन परबीन महावीर जसवंत सुत पुनि अर्जुन जस कीन।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
70 अब मैं अपना साहिब पाया 471 सतगुर कहा तुम्हारो जस गाऊँ 5
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
हाफ़िज़ की कविता- शाल़ग्राम श्रीवास्तव
कौन भरोसा देह का, छाड़हु जतन उपाय।कागद की जस पूतरी, पानि परे धुल जाय।।
सरस्वती पत्रिका
सूफ़ी लेख
जायसी का जीवन-वृत्त- श्री चंद्रबली पांडेय एम. ए., काशी
जहाँगीर वै चिस्ती निहकलंक जस चाँद। वै मखदूम जगत के हौं ओहि घर कै बाँद।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हाफ़िज़ की कविता - शालिग्राम श्रीवास्तव
कागद की जस पूतरी, पानि परे धुल जाय।।(च) संसार की असारता पर हाफ़िज़ का कहना है—
सरस्वती पत्रिका
सूफ़ी लेख
पदमावत के कुछ विशेष स्थल- श्री वासुदेवशरण
होइ उँजियार बैठि जस तपी। खूसट मुँह न देखावहिं छपी।7 नागमती सब साथ सहेलीं अपनी बारी माँह।8
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
आज रंग है !
फागुन मोहि अगिनी अस जारा, जस होरी जरिकै भई छारानहि भावै मोहे फाग धमारी, आगि लगै देखत पिचकारी
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
रामावत संप्रदाय- बाबू श्यामसुंदर दास, काशी
गाढ़ परे कपि सुमिरा तोहीं। होहु दयाल देहु जस मोहीं।। लंका कोट समुंदर खाई। जात पवनसुत बार न लाई।।